सम्वत्सर 2082

ओऽम् स्वस्ति श्री गणेशाय नमः।। ओऽम् अचिन्त्याव्यक्तरुपाय निर्गुणाय गुणात्मने। समस्त जगदाधार मूर्तये ब्रह्मणे नमः।। तिथिर्वारश्च नक्षत्रं योगः करणमेव च पञ्चाङ्गस्य फलं श्रुत्वा गङ्गास्नानफलं लभेत्।।

नव संवत्सर सिद्धार्थ विक्रमी संवत् २०८२ के ग्रहपरिषद् का वार्षिक फलादेश

अथास्मिन् वर्षे सृष्टितो गताब्दाः 1अ, 95क, 58ला, 85ह, 126ई, वर्तमानो वैवस्वतमनुः तस्य प्रवृत्तेः सप्तविंशतिमितानि महायुगानि व्यतीतानि, अष्टविंशतितमे युगे त्रयो युगचरणाः गताः। अत्र सत्ययुगप्रमाणम्- 17ला, 18ह, 000ई वर्ष, त्रेतायुगप्रमाणम्- 12ला, 96ह, 000ई वर्ष, द्वापरयुगप्रमाणम्- 8ला, 64ह, 000ई वर्ष, कलियुग प्रमाणं 4ला, 32ह, 000ई तन्मध्ये कलिः प्रथम चरणे संवत् 5126 अथास्मिन् शुभ सम्वत्सरे श्रीमन्नृपति वीरविक्रमादित्य राज्यतो गताब्दाः 2081, श्रीकृष्ण जन्म संवत् 5261, शक संवत् 1947, आङ्गल-वर्षानुसारेण 2025-2026 ईस्वी तत्र बार्हस्पत्यमानेन प्रभवादिषष्ठि सम्वत्सराणां मध्ये रुद्र विंशतिकायां त्रयोदशः (५३वाँ) ”सिद्धार्थ“ नाम शुभ सम्वत्सरः प्रवर्तते। अथ दशाधिकारिणः।। अस्मिन् वर्षे राजा सूर्यः। मंत्री सूर्यः। सस्येशो बुधः। धान्येशः चन्द्रः। मेघेशो सूर्यः। रसेशो शुक्रः। नीरसेशो बुधः। फलेशो शनिः। धनेशो मङ्गलः। दुर्गेशो शनिः।।

संसार की उत्पत्ति के साथ ही परिवर्तन जुड़ा हुआ है। सृष्टि के रचियता ने भी समय-समय पर विष्णुजी द्वारा सृष्टि की रचना का आदेश ब्रह्माजी को दिया और उन्होंने सृष्टि की रचना की। समय के साथ युग परिवर्तन हुआ। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग आया एवं राजा परीक्षित की शरण में याचक बनकर कलियुग ने प्रवेश किया। युग व्यवस्थानुसार सत्ययुग में मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, त्रेतायुग में वामन, परशुराम, श्रीरामचन्द्र, द्वापरयुग में श्रीकृष्ण और कलियुग में बुद्ध अवतार हुये तथा जब कलियुग के ८२१ वर्ष व्यतीत होने को रहेंगे, तो शंभल नामक ग्राम में विष्णुयश शर्मा के घर में भगवान् विष्णु श्रीकल्कि रूप में अवतार लेंगे। सत्ययुग में पुष्कर प्रधान-तीर्थ था। त्रेतायुग में नैमिषारण्य, द्वापरयुग में कुरुक्षेत्र और कलियुग में गङ्गा (हरिद्वार) प्रधान-तीर्थ है। सत्ययुग में धर्म चार पैर बाला था। त्रेतायुग में तीन पैर बाला, द्वापरयुग में दो पैर बाला तथा कलियुग में एक पैर बाला धर्म है, अर्थात् कलियुग में २५ भाग ही धर्म और ७५ भाग पाप है। सत्ययुग में इच्छित वर्षा होती थी इसलिए अन्न एक बार बीजकर २१ बार काटते थे। त्रेतायुग में भी वर्षा ठीक समय पर होती थी इसलिए फसल एक बार बीजकर ७ बार काटते थे तथा द्वापरयुग में फसल एक बार बीजकर ३ बार काटते थे। परन्तु कलियुग में वर्षा असमय होने से फसल एक बार बीजकर १ बार ही काटेंगेे, वह भी निश्चित नहीं नष्ट भी हो सकती है। वर्ण व्यवस्था अनुसार तीनों युगों में चारों वर्ण अपने-अपने वर्णाश्रम धर्म पर अटल थे। परन्तु कलियुग में अधिकतर ब्राह्मणवर्ग वेदज्ञान से शून्य क्षत्रिय लोग अधर्मी, वैश्य ठग व लूटेरे और शूद्र उच्चवर्ग से घृणा रखेंगे। इसके अतिरिक्त कलियुग में वर्णसंकत्व बहुत होगा। धूर्तों की पूजा होगी। व्यभिचारिणी साधवी और पाखण्डी संत कहलायेंगे। पुरुष स्त्रियों के वश में होंगे। पिता कन्या का विक्रय करेगा। जब पूर्णत्यः पूरे विश्व की सता पर शूद्र स्त्री सतासीन होगी तो यह महाकलियुग का अन्त समझें।

अथ कलिरुपम् :- पिशाचवदनः क्रूरः कलिश्च कलहप्रियः, धृत्वा वामे करे शिश्नं दक्षे जिह्वाञ्च नृत्यति।

विक्रमी संवत् 2082 का शुभारम्भ रुद्र विंशति के अन्तर्गत तेरहवां ‘सिद्धार्थ’ नामक नवसम्वत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार चैत्र प्रविष्टे 17, रविवार 30 मार्च सन् 2025 ई॰ को प्रारम्भ हो रहा है।। (29 मार्च, शनिवार को 16 बजकर 29मि॰ पर उ॰भा॰ नक्षत्र, मीनस्थ चन्द्रमां के सिंह लग्न में।)

सिद्धार्थ’ नवसम्वत्सर का फल विभिन्न संहिताओं में इस प्रकार लिखा है:-

बशिष्ठसंहिता के अनुसार : –

सुधातलमखिलं यद्बहुविधधान्यार्घसम्पूर्णम्।

विविधामयसर्पभयं वर्षे सिद्धार्थिसंज्ञे च ।।

सिद्धार्थ संवत्सर में सब जगह अमृतमय हो जाये। बहुत प्रकार के धान्य से पृथ्वी पूर्ण हो। किन्तु अनेक प्रकार से रोग एवं सर्प का भय हो।

नारद संहिता के अनुसार :-

सिद्धार्थीवत्सरे भूपाश्चान्योऽन्यं स्नेहकांक्षिणः ।

सम्पूर्णसस्यां वसुधां दुदुहुर्गा यथा तथा ॥

सिद्धार्थी नामक वर्ष में अन्तरराज्यीय (Inter state) तथा अन्तरराष्ट्रीय (Inter-national) सम्बन्धों में सौमनस्य रहता है। पृथ्वी पर सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों की उत्पत्ति होती है। विकास के लिये संसाधनों की वृद्धि होती है। विश्व में अनेक प्रकार की वैज्ञानिक प्रगति होती है ॥

वर्ष प्रबोध के अनुसार :-

सिद्धार्थवत्सरे भूयोज्ञानवैराग्ययुक्प्रजाः ।

सकलावसुधाभातिबहुसस्यार्घवृष्टिभिः ॥

सिद्धार्थ वर्ष में प्रजा ज्ञान वैराग्य से युक्त हो। सम्पूर्ण पृथ्वी पर प्रसन्नता रहे। और जल अन्न अच्छे हों ॥

मेघमाला के अनुसार :-

तोयपूर्णो भवेन्मेघो बहुशस्या वसुन्धरा।

सुखिनः पार्थिवाः सर्वे सिद्धार्थे शृणु सुन्दरि ।।

हे सुन्दरि ! सिद्धार्थ नामक संवत्सर में मेघ उत्तम वर्षा करते हैं, पृथ्वी अनेक प्रकार के धान्यों से परिपूर्ण रहती है एवं सभी पृथ्वीवासी सुखी रहते हैं॥

संवत्सर संहिता के अनुसार :-

तोयपूर्णो भवेन्मेघो बहुसस्या च मेदिनी ।

सुखिनः पार्थिवाः सर्वे सिद्धार्थे वरवर्णिनि ॥

सिद्धार्थ वत्सर में अच्छी वर्षा, अच्छी उपज, शासन की स्थिरता बनी रहती है।।

बृहत्संहिता के अनुसार :-

सिद्धार्थसंज्ञे बहवः प्रभूता गुणाः सम्पदादयो भवन्ति। 

सिद्धार्थ संज्ञक सम्वत्सर के समय अनेक गुण अर्थात् सम्पदा आदि की उपलब्धि होती है॥

मेघमहोदय के अनुसार :-

सिद्धार्थवत्सरे भूपाः शान्तवैरास्तथा प्रजाः

सकला वसुधा भाति बहुसस्यार्घवृष्टिभिः ॥

सिद्धार्थ वर्ष में राजा और प्रजा शान्तवैर हों,  सारी पृथ्वी पर बहुत धन धान्यकी वृद्धि और वर्षा से शोभायमान हो॥

मेघ महोदय के अनुसार ही संवत्सर के स्वामी का फल :-

सिद्धार्थे रविः स्वामी, सुभिक्ष सर्वदेशे वसतिर्वहुला अन्नविक्रयः, चैत्रे वैशाखे लोकपीडा, ज्येष्ठाषाढ़योरुद्दण्डवायुः, श्रवणे दिनत्रये महावर्षा सर्वान्नमहघता, भाद्रपदे खण्डवृष्टिः, आश्विनेऽन्नसमता, कार्त्तिके धान्यनिष्पत्तिर्यहुला अन्नसमर्थता, मार्गादिमासचतुष्टयमनं सारं सर्वत्र ग्राहकता उत्पातः क्वचिद् राजविरोधो लोकसुखमश्वमूल्यमहर्घता ॥

सिद्धार्थ वर्ष का स्वामी रवि, सुभिक्ष, सब देश में बहुत वसति, अन्न की बिक्री, चैत्र वैशाख मे लोकपीड़ा, ज्येष्ठ आषाढ़ में उदण्ड (प्रबल) वायु, श्रावण में तीन दिन महावर्षा, सब अन्न तेज, भादोंमें खण्डदृष्टि, आश्विन में अन्न भाव सम, कार्त्तिक में धान्य प्राप्ति, अनाज सस्ता, मार्गशीषादि चार मास सब स्थान में अनाजकी प्राप्ति, कहीं राजविरोध, लोक सुखी और घोडे़ (बाहन) का भाव तेज हो॥

॥ अथ अधिकारिणाम् फलम् ॥

इस वर्ष के राजा– सूर्य हैं –

सूर्ये नृपे स्वल्पफलाश्च मेघाः स्वल्पं पयो गौषुजनेषु पीड़ा ।

स्वल्यं सुधान्यं फलमल्पवृक्षाचौराग्निबाधा निधनं नृपाणाम् ॥

तीक्ष्णोऽर्कः स्वल्पसस्यश्च गतमेघोऽतितस्करः ।

बहुरगव्याधिगणो भास्कराब्दो रणाकुलः ॥

यदि संवत् का राजा सूर्य हों तो फल कम लगें-वर्षा कम हो-गायों के दूध भी कम रहे-मनुष्यों में पीड़ा हो, धान्य कम हो, वृक्षों में फल कम संगै, चौर तथा आग की बाधा हो और राजाओं का नाश हो॥ कृषि उपज तथा अन्य उत्पादन कम होते हैं। समयानुसार वर्षा न होने से खड़ी फसलों की हानि होती है। तस्करों, चोरो, पाखण्डियों, अपराधियों व लुटेरों का प्रभाव बढ़ता है। रोगों का प्रसार, अग्नि काण्ड, अस्त्रशस्त्रों का खुला प्रयोग, शासकों व शासक दलों में मतभेद पैदा होते हैं। जंगलों में आग की सम्भावना, शिशिर में भी कम सर्दी, साल में अधिक गर्मी भी होती है। जंगली जानवरों या रेंगने वाले जीवों का बस्तियों में प्रवेश होता है। सदाचारी लोगों को कष्ट, पशुओं की हानि आदि फल होते है।

इस वर्ष के मन्त्री– सूर्य हैं –

नृपभयं गदतोपि हि तस्करात्प्रचुरधान्यधनादि महीतले।

रसचयं हि समर्घतमं तदा रविरमात्यपदं हि समागतः ॥

यदि सूर्य मन्त्री हो तो, प्रशासकों व राजनीतिक पार्टियों में परस्पर विरोध एवं मतभेद रहेंगे । जनोपयोगी वस्तु पेयजल, गुड़ इत्यादि रसदार वस्तुओं के मूल्यों में भी तेजी होगी ॥

ध्यान दें- राजा और मन्त्री पद-एक ही ग्रह ‘सूर्यदेव’ को हैं

‘स्वयं राजा स्वयं मन्त्री जनेषु रोगपीड़ा चौराग्नि, शंका-विग्रह-भयं च नृपाणाम् ।।’

जिस वर्ष राजा और मन्त्री के पद एक ही ग्रह के पास हो, तो उस वर्ष विभिन्न देशों के राजनेता निरकुंश, स्वार्थपूर्ण एवं मनमाना आचरण करेंगे। अग्निकाण्ड, भूकम्प, बाढ़ादि प्राकृतिक प्रकोप तथा साम्प्रदायिक हिंसा एवं जातीय उपद्रव अधिक होंगे। कहीं वर्षा में कमी और जलवायु में उष्णता (गर्मी) अधिक रहे। लोगों में क्रोध और आवेश के कारण हिंसक घटनाएं अधिक होंगी। चोरी, डकैती, लूटमार, अग्निकाण्ड एवं लोगों में क्लिष्ट रोग, तनाव एवं नेत्र, रक्त-पित्तजन्य रोग अधिक होंगे।

  • सस्येश (ग्रीष्मकालीन फसलों के स्वामी) बुध हैं – वर्ष अधिक होने से जलप्लाव की स्थिति बने।
  • धान्येश (शीतकालीन फसलों के स्वामी) चंद्र हैं – कुछ स्थानों में पर्याप्त मात्रा में वर्षा हो।
  • मेघेश (वर्षा के स्वामी) सूर्य हैं – अनेकत्र वर्ष की कमी होने से अन्य उत्पाद काम हो।
  • रसेश (रस्सों के स्वामी) शुक्र हैं – संतोष सुख एवं सुभिक्ष रहे।
  • नीरेश (धातुओं व व्यापार के स्वामी) बुद्ध हैं – रंगीन पहरावा और स्वर्ण धातु में तेजी रहे।
  • फलेश (फलों के स्वामी) शनि हैं – लोगों एवं शासक वर्गों में आपसी कह रहे।
  • धनेश (धन-दौलत के स्वामी) मङ्गल हैं -वर्षा के अभाव में कृषक परेशान रहे।
  • दुर्गेश (सुरक्षा के स्वामी ) शनि हैं – सर्वत्र अराजकता एवं प्राकृतिक प्रकोप से कृषक प्रभावित हों।

रोहणी का वास ‘तट’ में है तो समय का बास ‘धोबी’ के घर में है’ और संवत्सर का वाहन ‘अश्व’ है, अत: बहुत जले अन्य पर्याप्त हो प्राकृतिक प्रकोप से हानि हो राजनीतिज्ञ दोरंगी चल चलेंगे।

चतुर्मेघों में ‘संवर्त’ नामक मेघ है। -”संवर्ते वायुपीड़नम्“ बायो बैक व अनेकतरा तूफान से हानि हो।
नवमेघों में ‘नील’ नामक मेघ ही है। – ‘जलदे जलवृष्टिर्जायते’ पर्याप्त वर्षा हो।
द्वादश नागों में ‘कर्कट’ नामक नाग है। – ”पवननाशनम्“ वायु वेग से अनेकत्र हानि हो।
सप्तवायु में ‘प्रवह’ नामक वायु है। -पहाड़ी क्षेत्रों में भू-स्खलन से हानि व समतल क्षेत्रों में पेयजल की कमी हो।

जलस्तम्भ प्रबल (८५.३%) है। तृणस्तम्भ (१००%) प्रबल है। वायुस्तभ (१०.७%) और अन्नस्तम्भ (२१%) क्षीण है। अतः पेयजल संकट, कृषि उपज को हानि, जल परिपूर्ण प्राप्त हो, वनस्पति व पशु चारा पर्याप्त मात्रा में रहे परंतु वायु व अन्न स्तंभ क्षीण होने से वायु वेग से हानि हो व खाद्यान्न की कमी हो॥

वर्षा आदि के विश्वमान :-> वर्षाविश्वा-11, धान्य-11, तृण-5, शीत-13, तेज-17, वायु-13, वृद्धि-15, क्षय-15, विग्रह-11, क्षुधा-3, तृषा-15, निद्रा-15, आलस्य-15, उद्यम-13, शान्ति-15, क्रोध-13, दम्भ-5, लोभ-3, मैथुन-15, रस-9, फल-13, उत्साह-11, उग्रता-13, पाप-15, पुण्य-5, व्याधि-5, व्याधिनाश-5, आचार-3, अनाचार-9, मृत्यु-7, जन्म-17, देशोपद्रव-7, देशस्वास्थ्य-13, चैर-3, चैरनाश-13, अग्नि-11, अग्निशान्ति-15, उद्भिज्ज-11, जरायुज-3, अण्डज-7, स्वेदज-11, टिड्डी-9, तोता-13, मूषक-15, सोना-11, ताँबा-15, स्वचक्र-9, परचक्र-15, वृष्टि-17, वृष्टिनाश-11 एवम् सम्वत् विश्वा-12

मेष/वृश्चिक के लिए-लाभ कम तो खर्च अधिक होगा। मानसिक परेशानियां भी बढ़ने के संकेत हैं। सिंह/ वृष/ तुला/ धनु/ मीन के लिए – मानसिक तनाव, शरीर कष्ट और रोगादि पर खर्च हो। आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हों। मिथुन/कन्या के लिए – व्यापार, सट्टा आदि द्वारा अकस्मात् धन लाभ हो। जमीन-जायदाद आदि कार्यों में खर्चा हो। कर्क के लिए – लाभ कम तो फिजूलखर्ची अधिक होगी। बनते कार्यों में विघ्न पड़ेगा। मकर/कुम्भ के लिए – धन लाभ अच्छा रहेगा। मनोवांछित योजनाएं सफल होंगी। मनोरंजक कार्यों में रूचि होगी। (लाभ + हानि -1) + 8 = शेष = 1, 3, 6, 7 उत्तम और शेष = 3, 4, 5, 0 चिन्ता।

सम्वत् २०८१ में गुरू, राहु व शनि ग्रहों का गोचर फल¹

(¹नोट:– गोचर का शुभाशुभ विशेष फल अपनी–अपनी जन्म कुण्डली के अनुसार प्रभावित होगा।)

गुरु का गोचर – सम्वत् २॰८२ में सम्वत् अन्त तक गुरु वृष-मिथुन-कर्क राशि में वक्री और मार्गी होकर संचार करेगा। अतः सभी राशियों पर गुरू का प्रभाव मिला-जुला ही रहेगा।

राहु का गोचर – इस वर्ष सम्वत् २॰८२ में राहु 17 मई तक मीन राशि में रहेगा। इस अवधिकाल में वृष, तुला एवं मकर के लिए अनुकूल तथा अन्य राशि वालों के लिए प्रतिकूल प्रभाव रहेगा। तदोपरान्त सम्बत् के अन्त तक राहु कुम्भ राशि में सचार करेगा। इस अवधिकाल में मेष, कन्या और धनु राशि के लिए अनुकूल तथा अन्य राशि वालों के लिए प्रतिकूल प्रभाव रहेगा।

शनि का गोचर – इस वर्ष शनि मीन राशि में ही रहेगा। मेषादि द्वादश राशियों पर शनि का प्रभाव निम्न हैः मेष (साढ़ेसाती) – मानसिक अशान्ति व शरीरकष्ट व अचानक खर्चों में वृद्धि। वृष- सुख साधन बढ़ेंगे, गृह में शुभ कार्य हों। मिथुन – मनोवांछित योजनाओं में सफलता प्राप्त होगी। कर्क भाग्योनति में बिलम्ब। सिंह (अष्टमस्थ-ढैय्या)- आय साधन सीमित व त्वचा रोग भय। कन्या- तनाव व उलझनें। तुला- धन लाभ व पदोन्नाति मिले। वृश्चिक – निर्वाह योग्य आय के साधन बनते रहेंगे। धनु (चतुर्थस्थ-ढैय्या)- तनाव व अचानक खर्च होने के संकेत हैं। मकर- आर्धिक लाभ व अन्य सुख साधनों में वृद्धि। कुम्भ- (साढ़ेसाती) संघर्षता के साथ कार्यों में सफलता मिले। मीन (साढ़ेसाती)- संघर्षपूर्ण व कार्यों में विघ्नता के साथ लाभ प्राप्त हो।

ग्रहण विवरण- 7/8 सितम्बर 2025 को खग्रास चन्द्रग्रहण है और 3 मार्च 2026 को भी खग्रास चन्द्रग्रहण है।

रक्षा बन्धन 9 अगस्त 2025 को है। शरद् नवरात्र 22 सितम्बर 2025 से हैं, विजयादशमी 2 अक्तूबर 2025 को और दीपावली 21 अक्तूबर 2025 को है।

फलानि ग्रहसंचारेण सूचियन्ति मनीषिणः।

को वक्तः तारतम्यस्य वेधसं विना।।

अर्थात् समर्थ भविष्य के निर्धारक तो स्वयं ईश्वर ही हैं।।

संवत्सर का श्रवणफल-संवत्सर का श्रवण करना चाहिए। इसके बाद काली मिर्च, नीम की पत्ती, मिश्री, अजवाइन व जीरा का चूर्ण बनाकर खाना चाहिए।

।। नववर्ष आप सबके लिए मङ्गलमय हो।।